बेलगाम दरोगा ने पत्रकार से की अभद्रता व दी जाति सूचक गालियां

खाकी का प्रयोग समाज व जनता की रक्षा व सहायता के लिये किया जाता है परन्तु इसी समाज में कुछ ऐसे खाकी वाले भी हैं जो अपने कुकर्मों से खाकी को बदनाम करने में कोई कोर कसर नही छोड़ते। ऐसे पुलिस वालों के लिए डीजीपी और सीएम का कोई आदेश मायने नही रखता। आखिर आदेश माने भी क्यों क्योंकि तन पर खाकी जो है रौब में तो रहना ही है। यूपी पुलिस ऐसे ही पुलिस वालों की वजह से शर्मसार होती आ रही है।


जानिए पूरा मामला 


 


घटना बाराबंकी जनपद की है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जिला रिपोर्टर जसवन्त लाल कनौजिया अपनी ओमिनी वैन से अपने परिवार को लोधेश्वर महादेव के दर्शन कराकर वापस आ रहा था कि केसरीपुर रेलवे क्रासिंग के पास चेकिंग कर रहे कोतवाली रामनगर के दरोगा पन्नालाल सैनी व वहां मौजूद दो सिपाहियों ने पत्रकार जसवंत लाल की गाड़ी को रूकवाकर गाड़ी के पेपर मांगे तो जसवंत लाल ने अपना परिचय देकर कहा "सर मैं पत्रकार हूँ " गाड़ी के कागज दे रहा हूँ बस क्या था पत्रकार शब्द सुनते ही दरोगा जी भड़क गए और जसवन्त लाल को जाति सूचक गालियां देने लगे बोले तू धो... कब से पत्रकार बन गया .जब जसवंत लाल ने अपना प्रेस कार्ड दिखाया तो उपनिरीक्षक पन्नालाल ने जसवंत लाल का प्रेस कार्ड फेंक दिया और कहा कि गाड़ी के कागज जमा करके जल्दी भाग जा। दरोगा इतने पर भी नही रुका और सीटबेल्ट न लगाने का चालान काट दिया जबकि जसवंत लाल ने सीट बेल्ट लगा रखी थी।

अब प्रश्न यह उठता है कि दरोगा पन्नालाल को किसी व्यक्ति को अपमानित करने, उसे जातिसूचक गालियां देने व वह जिस जाति का है उस जाति का अपमान करने का अधिकार किस कानून ने दिया ?

 

क्या पुलिस ट्रेनिंग के दौरान दरोगा को ठीक तरीके से व्यवहारिक प्रशिक्षण नही दिया गया ? या उसने खुद नही प्राप्त किया ?

उत्तर प्रदेश के सीएम व पुलिस के मुखिया अपने विभाग को पत्रकारों से ठीक तरीके से व्यवहार करने का आदेश भले कागजों पर देते आ रहे हों पर असलियत कुछ और ही है किसी ने सच ही कहा है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं।

 

अब देखना यह है कि बाराबंकी के पुलिस आलाधिकारी इस मामले को संज्ञान में लेते हुए क्या कार्यवाही करते हैं ?

 

या किसी दूसरे जसवंत लाल को इसी तरफ पुनः किसी पन्नलाल जैसे बेलगाम दरोगा के हाथों अपमानित होना पड़ेगा।